Ad Code

Ticker

6/random/ticker-posts

story of Battle of Haifa, which was never repeated in history


 Dalpat-singh-shekhawat-brave-indain-soilder-in-battel-of-haifa

तिहास कारों ने बड़ी सफाई से इतिहास के पन्नों से भारतीय योद्धाओं की अकल्पनीय विजय की एक कहानी को हटा दिया. ऐसा कारनामा इतिहास में फिर कभी दोहराया नहीं जा सका। 



यह कहानी है इसराइल में लड़ी गई उन भारतीय रणबांकुरों की, जिन्होंने तोप—बंदूक का इस्तेमाल किए बिना ही तुर्की, ऑस्ट्रिया और जर्मनी की संयुक्त साधन सम्पन्न शक्तिशाली सेना का मुकाबला किया. और अपना नाम अमर कर दिया।

यह कहानी प्रथम विश्व युद्ध के समय की है . इतिहास में इसे हाइफ़ा युद्ध के नाम से जाना गया हाइफ़ा को जीते बिना प्रथम विश्व युद्ध जीतना नामुमकिन था 

map-where-battel-of-haifa-fought
प्रथम विश्व युद्ध के समय हाइफ़ा को तुर्की सेना से आज़ाद कराने की ज़िम्मेदारी ब्रिटिश सेना की थी इस जंग को जीतना बिलकुल भी असंभव था क्युकी दुश्मन सेना ज्यादा ताक़तवर थी और एक तरफ किशोर नदी थी तो दूसरी तरफ कार्मेल पर्वत और बीच में था बिलकुल संकरा रास्ता और हमला करना केवल इस रास्ते से ही संभव था हाइफ़ा  पर कब्जे के लिए एक तरफ तुर्की, जर्मनी और ऑस्ट्रिया की संयुक्त सेना थी इन सैनिकों के पास आधुनिक हथियारों की कोई कमी ना थी थी तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की तरफ से हिंदुस्तान की तीन रियासतों की फौज ब्रिटिश सेना के लिए ये जंग अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा था




तुर्की और जर्मनी के ओटोमन सैनिक ने ब्रिटिश सेनाओं के सारे हमले को एक एक कर अपने आधुनिक हथियारों से नाकाम कर दिया ब्रिटिश सेना के अधिकारियों को उस समय सेनाओं की जरूरत थी तब उन्हें ने भारत की 3 रियासतों जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद के सैनिकों से मदद की मांग की उन्होंने ने मांग स्वीकार की और अपने सेना को जंग लड़ने भेज दिया , हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खिलाफ  विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने को आदेश दिया.

भारतीय सैनिकों में कुछ संख्या अंग्रेज सैनिकों की भी थी. ब्रिगेडियर जनरल एडीए किंग को दुश्मन सेना के बारे में जानकारी मिली. उन्हें पता था कि यदि सेना अंदर गई तो उनका लौट कर आना नामुमकिन है  इसलिए उन्होंने सेना को जंग ना लड़ने के लिए कहा.

Dalpat-singh-sekhawat-the-brave-solder-who-lead-the-battel-of-Haifa
अंग्रेजी सैनिक पीछे हट गए. पीछे हटने का मौका भारतीय सैनिकों के पास भी था, पर मेजर दलपत सिंह शेखावत की अगुवाई में कोई भी सैनिक अपने फर्ज़ से पीछे नहीं हटना चाहता था. सवाल यह था कि यदि आज पीछे हटे तो वापिस जाकर अपने देश, अपनी रियासत और परिवार को क्या मुंह दिखाएँगे?




भारतीय सैनिक घोड़े पर सवार थे. उनके पास लड़ने के लिए केवल भाले और तलवारें थीं. अंग्रेजी सरकार ने पैदल चलने वाले कुछ सैनिकों को बंदूक थमा दीं. भारतीय घुड़सवार सैनिकों को हाइफा में मौजूद तुर्की सेना और माउंट कार्मेल पर तैनात तुर्की तोप खाने को तहस-नहस करना था. जोधपुर लांसर्स ने अपने सेनापति मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में सबसे पहले शहर में कदम रखा. उनकी योजना नदी पर हाइफा पर कब्ज़ा करने की थी


23 सितम्बर 1918 को 15th [Imperial Service] से Cavilary Brigade को हाइफा पे कब्ज़ा करने का आदेश दिया गया जाने का सिर्फ के ही रास्ता था और वो ही संकरा सा जहाँ पर माउंट कारमेल पर ओटोमन सेना ने मशीन गन से अच्छी तरह से किला बंद कर रखी थी जिसको पार कर जितना ना मुमकिन था ब्रिगेड की जोधपुर लांसर्स को चौकी पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा जाया था जबकि मैसूर लांसर्स उत्तर से हमला करने के लिए चले गई और 15 वीं (इम्पीरियल सर्विस) घुड़सवार ब्रिगेड ने सुबह 5 बजे हाइफा की ओर बढ़ना शुरू किया और 10 बजे तक शहर के मुख्य द्वार पर पहुंच गए. 


soldier-climbing-mount-caremel-during-battel-of-haifa

मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत की योजना नदी पार कर हाइफा पे कब्ज़ा करने की थी लेकिन दो घुड़सवार नदी के किनारे दलदली होने के कारण उसमें डूब गए इसके बाद ठाकुर ने सैनिकों का रुख पहाड़ी के तरफ बदल दिया जिसके चलते वे सीधे मशीन गन और तोप खाने के निशाने पर आगएँ जिसके कारण मेजर ठाकुर दलपत सिंग शिखावत शुरुआत में ही मारे गए इसके बाद उनके डिप्टी बहादुर अनुप सिंह जोधा आगे आये, हुआ यु की दलपत सिंग का सेना के साथ कार्मेल पहाड़ पर अचानक तीखी चढान पर जाने से तुर्की सेना संभल नहि पाई लेकिन बाद में उन्होंने ने मोर्चा  संभल  इसके बाद सेना ने हाइफा पर धावा बोल दिया. इससे पहले कि तुर्की सैनिक अचानक हुए इस हमले से सावधान हो पाते, भारतीय सैनिकों ने बंदूकों से गोलियां बरसाने शुरू कर दिया.

जोधपुर के सैनिक माउंट कार्मेल पर भालों से हमला कर रहे थे. वहीं मैसूर के सैनिकों ने पर्वत के उत्तरी तरफ से हमला किया. इसके बाद घुड़सवार तेजी से शहर में दाखिल हुए और एक—एक कर तुर्की सैनिकों को भाले से मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया.

सेना के एक कमांडर कर्नल ठाकुर दलपत सिंह लड़ाई की शुरुआत में ही मारे गए. इसके बाद उनके डिप्टी बहादुर अमन सिंह जोधा आगे आए. शुरुआत में भले ही तुर्की सैनिक नहीं संभल पाए थे पर बाद में उन्होंने मोर्चा संभाला और मशीनगन से घुड़सवारों को निशाना बनाया.


fighting-of-battel-of-haifa
यह दुनिया के इतिहास में घुड़सवार सेना का महान अभियान था. घोड़े घायल हो रहे थे पर रूक नहीं रहे थे. भारतीय सैनिकों पर चारों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई. भारतीय सैनिक एक—एक कर मरते जा रहे थे और मारते भी जा रहे थे.लेकिन पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे थे



मैसूर लांसर्स की एक स्क्वाड्रन शेरवुड रेंजर्स ने दक्षिण की ओर से माउंट कार्मेल पर चढ़ाई की. सैनिकों ने कार्मेल की ढलान पर दो सैनिक तोपों पर कब्ज़ा कर लिया. इसके बाद सैनिकों ने तुर्की सेना के हथियारों से ही उन पर हमला शुरू कर दिया. उनके दुश्मन यह देख कर हैरान हो गए थे कि आखिर कैसे भारतीय सैनिकों ने उनके ही हथियारों से उन्हें मारना शुरु कर दिया था  यह दुनिया के इतिहास में घुड़सवार सेनाओं का महान अभियान था घोड़े घायल हो रहे थे पर रुक नहीं रहे थे  

 ‘बी’ बैटरी एचएसी के समर्थन से जोधपुर लांसर्स ने दोपहर 2 बजे के बाद शहर के बाहर से अपने बाकी घुड़सवार सैनिकों को बुलाया. दोपहर 3 बजे तक घुड़सवार सैनिकों ने तुर्की सेना की अधिकांश चौकियों को नष्ट कर दिया और बाकी पर कब्ज़ा कर लिया. लगभग 4 बजे तक हाइफा शहर तुर्की सेना की गिरफ्तार से आज़ाद हो चुका था.




यह लड़ाई अगर आसान शब्दों में कहा जाये तो कमजोर सेना की लड़ाई हतियारो से लयेश सकती-साली किला बंद सेना से था और अपने आप में इतिहास में अकेला एशा युद्ध था जहाँ घुड़सवार सेनाओं ने किला बंद सेना से जीत हासिल की थी मेट्रो दो घंटे चली इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने जीत दर्ज की जो अँग्रेज़ कई बार प्रयास करने के बाद भी नहीं कर पाए थे भारतीय शूरवीरा ने जर्मन- तुर्की सेना के 1350 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया जिसमे दो जर्मन अधिकारी तेईस ओटोमन अधिकारी और बाकी अन्य थे इसके अलावा 17 तोपें, 11 मशीनगन और हजारों की संख्या में जिंदा कारतूस भी ज़ब्त किए गए इस युध्द  में 8 भारतीय सैनिक मरे गए थे और 34 घायल हुए वही 60 घोड़े भी मारे गए और 43 घायल हो गए थे हाइफा में भारतियो के लिए कब्रिस्तान बनाया गया जो 1920 तक इस्तेमाल किया जाता रहा 

statue-of-three-bave-soldier-who-guiding-the-battel-of-haifa

भारत में इन सैनिकों के याद में 1922 में तीन मूर्ति स्मारक बनाया गया और हाइफा युद्ध में . अदम्य साहस दिखाने वाले ठाकुर दलपत सिंह को ब्रिटिश हुक़ूमत ने मरणोपरांत मिलिटरी क्रॉस से सम्मानित किया. उनके अलावा कैप्टन अनूप सिंह और से़कंड ले. सागत सिंह को भी मिलिटरी क्रॉस पदक दिया गया. ब्रिटिश हुकूमत ने कैप्टन बहादुर अमन सिंह जोधा और वफ़ादारी जोर सिंह को भी उनकी बहादुरी के लिए इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट पदक दिए.

हाइफा युद्ध भारत के सैनिकों द्वारा लड़ा गया वह युद्ध था जिसे आज शायद ही कोई जानता होगा. इतिहास के पन्नों में यह कहानी ना जाने कितने सालों से धुल खा रही है. यह युद्ध भले ही ब्रिटिश सेना ने लड़ा था मगर इसमें जीत भारतीय सैनिकों ने ही दिलाई. उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि आखिर भारत के सैनिक कितने फौलादी


मै आसा करता हुं की आपको महान भारत के इतिहास के बारे में  जान कर गर्व हुआ होगा. अगर आपको ये पसंद आया तो कृपया इसे शेयर करना ना भूले

You May Also like:--

  1. Interesting Facts About Burj Khalifa
  2. Unsolved mysteries of the pyramids of Egypt
  3. Amazing and interesting facts about the number 7 (seven)
  4. Biggest Unsolved Mysterious Miracles of India
  5. Mind-blowing Facts That You Will Hear For First Time
  6. Random, unique and amazing mind-blowing facts
  7. ANTILIA – The world's most valuable residential property– Mukesh Ambani's Home
  8. Amazing Unknown facts about Taj Mahal in Hindi
( Note - ALL THE IMAGES / PICTURES SHOWN IN THE BLOG BELONGS TO BE RESPECTED OWNERS AND NOT ME... I AM THE NOT THE OWNER OF ANY PICTURES SHOWED IN THE BLOG )

Post a Comment

5 Comments

  1. hello bro
    i need help please contact me on whatsap (997832014)
    https://www.factburner.tk/

    ReplyDelete
    Replies
    1. you can freely ask here or contact me through contact form of the website, I will surely help you whatsoevere i can do.

      Delete
  2. Very few people know the battle of Haifa

    ReplyDelete
    Replies
    1. Yes you are right, There are many such history of India which Indians are forgetting

      Delete

Any Comment having the intention of spamming will not publish nor any irrelevant advertisment link will allow in the comment. Thanks!

Ad Code