Ad Code

Ticker

6/random/ticker-posts

कोरोना से जुड़े कुछ मिथ और सच्चाई (Part-1)


कोरोना से जुड़े कुछ मिथ और सच्चाई, Some myths and truths related to corona virus, corona virus news, Coronavirus Disease 2019: Myth and Truth, corona virus update, coronavirus, coronavirus symptoms, Hindustan corona myth aur sacchai, Top Coronavirus disease COVID 19 Myth in hindi, Expert Tips: Busting Myths About Coronavirus, कोरोना वायरस: जानिए कुछ ताजा मिथक और उनकी सच्चाई, What is the recovery time for the coronavirus disease?, Is headache a symptom of the coronavirus disease? Can the coronavirus disease spread through food? Can someone who died from coronavirus disease be buried? coronavirus myth busters, corona myth and reality, Coronavirus vaccine, Coronavirus symptoms, Coronavirus cases in India, Coronavirus mumbai, Coronavirus usa, myth vs reality, मिथ: वायरस में बदलाव होने के साथ ही वह कम घातक हो जाएगा।
सच्चाई: वैज्ञानिकों के अनुसार, इस बात की गारंटी नहीं है की बदलाव(म्यूटेशन) के बाद वायरस कम घातक हो जाएगा। फिलहाल वैज्ञानिकों की चिंता यह है की अगर वायरस बदल गया, तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली इसकी पहचान नहीं कर पाएगी और इसकी वर्तमान स्थिति के आधार पर कोई टीका बनाया गया, तो वह ज्यादा समय तक प्रभावी नही रह पाएगा।



  • मिथ: टीके के लिए अफ़्रीकी लोगों पर प्रयोग हो रहे हैं।
सच्चाई: सोशल मीडिया के जरिये यह अफवाह फैलाई जा रही है की कोविड-19 वायरस के टीके की खोज के लिए अफ़्रीकी लोगो पर प्रयोग किये जा रहे है। इन खबरों में कोई सच्चाई नहीं है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए अब तक कोई टीका ईजाद नहीं हुआ है। सिर्फ चुनिंदा जगहों पर ही इसके क्लिनिकल ट्रायल हो रहें हैं और वे सभी अफ़्रीकी देशों से बाहर किए जा रहे हैं।



  • मिथ: तेज बुखार-खांसी होते ही तुरंत अस्पताल जाएं।
सच्चाई: एम्स के निदेशक, डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि कोविड-19 महामारी के इस समय में बहुत जरूरी होने पर ही अस्पताल जाएं। इससे स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। तेज बुखार और खांसी जैसे लक्षण दिखने पर सबसे पहले फोन से डॉक्टर की सलाह लें। कई और दूसरे लक्षण भी मायने रखते हैं। इसके बाद ही आगे की प्रक्रिया शुरू करें।



  • मिथ: तेज मिर्च वाले भोजन से कोविड-19 संक्रमण नहीं होता।
सच्चाई: काली हो या लाल मिर्च तेज मसालेदार भोजन से कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव नहीं होता। आयुर्वेदिक पद्धति में काली मिर्च का प्रयोग सर्दी जुकाम आदि में लिए जाने वाले काढों में होता है पर इससे कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं होगा, ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।





  • मिथ: डिस्पोजेबल मास्क संक्रमण से पूरी तरह बचाते हैं।
सच्चाई: स्वास्थ्य कर्मी जो फेस मास्क प्रयोग करते हैं, वे उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं, और चेहरे पर चारों ओर से बिल्कुल फिट बैठते हैं इससे संक्रमण से बचाव होता है। डिस्पोजेबल मास्क ऐसी सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकते हैं। वह वायरस के सूक्ष्म कणों को नहीं रोक सकते हैं, कपड़े से बने मास्क ड्रॉपलेट्स को फैलने से जरूर रोक सकते हैं। N-95 जैसे मास्क सुरक्षा देते हैं लेकिन फिलहाल उनकी जरूरत स्वास्थ्य कर्मियों को ज्यादा है। अमेरिका के सीडीसी के अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर सबको कपड़ों से बना मास्क पहनना चाहिए। साथ ही दूसरी सावधानियां भी बरते।



  • मिथ: रेस्तरां का खाना खाने से कोरना संक्रमण होता है।
सच्चाई: घर हो या होटल, खाना अधिक तापमान पर पकाने के कारण वायरस खत्म हो जाते हैं। पके हुए भोजन से वायरस संक्रमण नहीं होता। वैसे संभव हो तो इस समय घर का बना खाना खाएं। खाने के ठिकानों पर भीड़ हो सकती है। जहां खाने से भले ना हो पर दूसरी रूप में संकरण फैलने की आशंका बढ़ जाती है, ऐसे में सामाजिक दूरी का पालन करना ही सही होगा।



  • मिथ: फिटनेस के कारण खिलाड़ी कोरोना संक्रमित नहीं होंगे।
सच्चाई: कई ओलंपियनों को ट्रेनिंग दे चुके प्रसिद्ध फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. निखिल लाटे का कहना है कि ऐसा सोचना तर्कसंगत नहीं है। कई फुटबॉल खिलाड़ी और एनबीए स्टार कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, जिससे सिद्ध होता है कि फिट से फिट व्यक्ति भी कोविड-19 संक्रमण का शिकार हो सकता है। इसके खिलाफ कोई प्राकृतिक इम्यूनिटी नहीं है। मानव शरीर को अभी यह स्पष्ट पता नहीं है कि इस वायरस से कैसे निपटा जाए? हां, यह हो सकता है कि एथलीट इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित न हों, और उनके लक्षण थोड़े हलके हों। पर, उन्हें संक्रमण नहीं होगा, यह सोचना गलतफहमी है।



  • मिथ: एनडेमिक और पैनडेमिक का मतलब एक ही है।
सच्चाई: यह बात सही नहीं है। हालांकि एनडेमिक और पैनडेमिक दोनों उन बीमारियों को कहा जाता है, जो बहुत तेजी से फैलती हैं और बहुत सारे लोगों को शिकार बनाती है। पर, एनडेमिक का फैलाव किसी खास भौगोलिक हिस्से में होता है, जैसे कि स्पैनिश फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया आदि। पैनडेमिक का फैलाव एक साथ कई देशों में होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पैनडेमिक ज्यादातर नए वायरस से होने वाला संक्रमण है, जो एक से दूसरे व्यक्ति में दुनिया भर में फैल जाता है। इस तरह पैनडेमिक का असर ज्यादा होता है। कोविड-19 को पैनडेमिक कहा गया है।





  • मिथ: आंखे लाल होने का अर्थ कोरोना संक्रमण होना है।
सच्चाई: कंजक्टिवाइटिस के कारण भी आंखें लाल या गुलाबी होती हैं। यह सही है कि कोरोना से संक्रमित लोगों में आंखें लाल होने का लक्षण भी सामने आया है, पर ऐसा नहीं है कि इस वक्त जिन्हें ऐसा हो रहा है, उन सबको कोविड-19 है। हां, एहतियात तो जरूरी है, पर इसके साथ सांस लेने में तकलीफ, तेज बुखार, लगातार खांसी-जुकाम आदि के लक्षण भी देखें।



  • मिथ: अभी की स्थिति में फ्लू शॉट किसी को नहीं लेना चाहिए।
सच्चाई: ऐसा नहीं है। यह सही है कि फ्लू शॉट से कोविड-19 से बचाव नहीं होता। बावजूद इसके कुछ लोगों के लिए इसे लगवा लेना बेहतर है। खासतौर पर बुजुर्गों और जिन्हें सर्दी-जुकाम या एलर्जी ज्यादा रहती है। इससे मौसमी फ्लू से बचाव हो सकता है।


  • मिथ: आइसोलेशन और क्वारंटीन लगभग एक ही बात है।
सच्चाई: दोनों का अर्थ समान नहीं है। बहुत सारे लोग इन शब्दों को एक-दूसरे की जगह इस्तेमाल कर रहे हैं, पर दोनों में काफी फर्क है। किसी व्यक्ति को सामान्य तौर पर क्वारंटीन तब किया जाता है, जब वह वायरस के संपर्क में आता है, लेकिन उसमें बीमारी के लक्षण नहीं होते। वह संदिग्ध की श्रेणी में होता है। वहीं किसी व्यक्ति को आइसोलेट तब किया जाता है, जब वह वायरस से संक्रमित हो जाता है।


  • मिथ: दवाओं की री-पर्पसिंग का कोरोना में फायदा नहीं है।
सच्चाई: दवाओं की री-पर्पसिंग का अर्थ है, किसी एक रोग की दवा का दूसरे रोग के उपचार में प्रयोग। एड्स के उपचार और रोकथाम में इस्तेमाल की जाने वाली दवा को अब आईएमसीआर ने कोविड-19 के उपचार के लिए कुछ शर्तों के साथ प्रयोग करने की स्वीकृति दे दी है। और भी कई दवाओं के कोविड-19 के उपचार में प्रयोग पर विचार हो रहा है। एम्स, भोपाल के निदेशक डॉ. शरमन सिंह के अनुसार, दवाओं की री-पर्पसिंग कोविड-19 के लिए उपचार ढूंढ़ने का ज्यादा आसान और व्यावहारिक विकल्प साबित हो सकता है। इसीलिए दुनिया भर में इससे जुड़े कई अध्ययन किए जा रहे हैं।




  • मिथ: एचआईवी वाले लोगों को जोखिम कहीं ज्यादा है।
सच्चाई: फिलहाल इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि जो एचआईवी पीड़ित एंटीरेट्रोवायरल उपचार ले रहे हैं और जिनकी स्थिति चिकित्सीय रूप से ठीक है, उन्हें सामान्य लोगों के मुकाबले कोविड-19 से अधिक खतरा है। हां, जिन एचआईवी पीड़ितों को मधुमेह, हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं हैं, उन्हें सामान्य संक्रमितों के मुकाबले ज्यादा जटिलताएं हो सकती हैं, क्योंकि बिना एचआईवी वाले डायबिटीज व हाइपरटेंशन के मरीजों को भी कोरोना संक्रमण से ज्यादा खतरा रहता है। गौरतलब है कि सार्स और मर्स के दौरान भी एचआईवी पीड़ितों के संक्रमण के गिने-चुने और हलके मामले ही सामने आए थे।


  • मिथ: कोरोना वायरस बदलेगा तो उसका जेनेटिक कोड भी बदल जाएगा।
सच्चाई: इसमें दो राय नहीं कि कोई नया वायरस आता है, तो वह अपना रूप बदलता रहता है, लेकिन उसके बदलने के साथ उसका जेनेटिक कोड भी बदल जाएगा, यह जरूरी नहीं है। अधिकतर मामलों में वायरस के बदलाव के साथ उसके जेनेटिक कोड में कोई खास बदलाव नहीं होता है।


  • मिथ: हल्के लक्षण वाले कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति से संक्रमण नहीं फैलता।
सच्चाई: यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल’ (ईसीडीसी) के अनुसार, सार्स-कोव-2 यानी कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति अपने संक्रमण के शुरुआती दौर में संक्रमण का प्रसार कर सकता है। दरअसल, संक्रमण के दौरान लक्षणों के शुरू होने से एक-दो दिन पहले श्वसन-मार्ग (रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट) के नमूनों में वायरस की उपस्थिति पाई गई है।

Post a Comment

0 Comments

Ad Code